
उन पत्तियों सी झुक जाती हैं जिनमे ओस भरी हो,
सुबह सवेरे गिर जाती हैं जैसे रतजगी रोई हो,
पर सुबह भी कभी कोई रोता है?
अब हर कोई ना तुझसा है ना मुझसा,
माँ कमरे में आ जाए तो झूठे मुँह
आँख में ओस भर कर सोता है..
(माँ को पता ना चले, कई बार सिसकियाँ दबा कर भरी आँखों से सोने का नाटक किया है..)
माँ कमरे में आ जाए तो झूठे मुँह
ReplyDeleteआँख में ओस भर कर सोता है.
bahut khub likha apne.